Thursday 14 January 2016

रूपकुंड ट्रैक- (भाग १) - आयोजन और दिल्ली से वाण गाँव

आयोजन और दिल्ली से वाण गाँव

  अप्रैल अंतिम सप्ताह में जब डोडीताल ट्रैक किया था तो एक महीने तक पहाड़ की याद नहीं आयी, ट्रैकिंग का कीड़ा बढ़िया से शांत ही रहा, बस हर पल डोडीताल की खूबसूरती ही मन में घूमती रही, फिर जैसे जैसे दिन बीतने लगे कीड़ा कुलबुलाने लगा तो दिमाग खुद ही दौड़ने लगा कि कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं, अभी बारिश का मौसम भी शुरू हो चूका था, अगस्त के आखिरी सप्ताह के बाद ही निकला जा सकता था, अचानक एक दिन ख्याल आया कि क्यों ना जी भर के बुग्याल देखें जाएँ, तभी इस बार बुग्याल देखने की ठान ली, वो भी बारिश के तुरंत बाद जब बुग्यालों की खूबसूरती अपने चरम पर होती है। खोजबीन शुरू की तो काफी जगह नजर गयी, पंवाली बुग्याल, दयारा बुग्याल, बेदिनी बुग्याल, गोरसों बुग्याल आदि। आखिरी जंग हुयी पंवाली बुग्याल और बेदिनी बुग्याल के बीच, इसमें बेदिनी बुग्याल जीत गया, इसका सबसे बड़ा कारण था इसके साथ आली बुग्याल का साथ में होना और रूपकुण्ड का इस ट्रैक से जुड़ा होना, जी हाँ वही रूपकुण्ड जो Mystrey Lake के नाम से जाना जाता है, और यहाँ बिखरे पड़े सदियों पुराने नर कंकालों के लिए विश्व प्रसिद्द है। रूपकुंड के बारे में विकिपीडिया से जानकारी लेने के लिए यहाँ क्लिक करें.




  अब खोज शुरू हुयी कि इस यात्रा का साथी कौन होगा ? असल में रूपकुण्ड काफी थका देने वाला और लंबा ट्रैक है तो इसे मैं अकेले नहीं करना चाह रहा था, कोई साथ में रहे तो मजा दोगुना हो जाता है। अपने डोडीताल के साथी सचिन से चलने के लिए पुछा तो उसने असमर्थता जाता दी, लेकिन मेरी ट्रैक से संभन्दित खोजबीन जारी रही। एक दिन अपने दोस्त सूर्य प्रकाश डोभाल को पूछ लिया कि मैं रूपकुंड ट्रैक करने की सोच रहा हूँ चलेगा क्या ? उसने तुरंत हां बोल दिया। डोभाल श्रीनगर (गढ़वाल) में रहता है तो मैंने सोचा अकेले जाने की बजाय हम दो होंगे तो ज्यादा अच्छा है।

   अगले दिन ही विनोद बिष्ट (हम सभी प्यार से लम्बू कहते हैं) का देवप्रयाग से फोन आ गया, उससे भी जिक्र कर दिया कि डोभाल और मैं रूपकुंड जा रहे हैं चलेगा क्या ? लम्बू ने भी हाँ बोल दी। अब हम तीन बचपन के दोस्त चल ही रहे हैं तो चौथे यशवंत से भी पूछ लिया, उसने भी हां कह दी पर सितम्बर की बजाय अक्टूबर प्रथम सप्ताह में चलने को हामी भर दी। मेरा मन सितम्बर में जाने का था। क्योंकि बुग्याल की सुंदरता शूरू के 20-25 दिन ही होती है, उसके बाद सूखने लगते हैं, हल्का सा पीलापन आ जाता है और अक्टूबर दुसरे सप्ताह के बाद तो वहां बर्फ भी गिर जायेगी। लेकिन जब सारे दोस्त जाने का मन बना चुके हों तो थोडा बहुत कोम्प्रोमाईज़ करना पड़ता है। यात्रा की तारीख निर्धारित हो गयी 1 अक्टूबर। यशवंत और मैं 30 सितम्बर को दिल्ली से निकलेंगे बाकी दोस्त 1 अक्टूबर सुबह श्रीनगर में मिलेंगे और इस बार गांधी जयंती बेदिनी बुग्याल में मनाई जायेगी।

  जैसे-जैसे यात्रा का दिन नजदीक आता जा रहा था, वैसे हमारी टीम के मेंबर भी बढ़ने लगे, यह पहली बार हो रहा था, नहीं तो प्लानिंग के समय कई मित्र हां बोलते हैं, लेकिन धीरे धीरे कम होते जाते हैं, और कई बार तो अकेला ही रह जाता हूँ। लम्बू के सहकर्मी धनेश पालीवाल भी तैयार हो गए, डोभाल का भांजा सुमित नौडियाल भी अपने दो दोस्तों विनीत और पंकज के साथ चलेगा। कुल मिलाकर आठ लोगों का अच्छा ख़ासा ग्रुप बन गया, कहाँ मैं सिर्फ एक साथी ढूंढ रहा था, चलो बढ़िया है मजा आएगा। अब रहने खाने की ब्यवस्था करनी थी, इस ट्रैक में यही सबसे बड़ी समस्या मुझे नजर आ रही थी, नीरज जाट भाई से संपर्क किया और टेंट, स्लीपिंग बैग, मैट्रेस सब किराये पर ले लिए। श्रीनगर से पांच लोग कार से चलेंगे, सुमित अपने दोस्तों विनीत और पंकज के साथ बाइक से आएगा। सब कुछ तय हो गया, सबको जरूरी सामन और कपड़ों की लिस्ट थमा दी, वाण गाँव में घोडा भी फ़ोन से ही बुक करवा लिया, अब 30 सितम्बर की इंतजारी होने लगी।
  30 सितम्बर 2015 (पहला दिन) - आज रात को यशवंत और मुझे दिल्ली से निकलकर कल सुबह जल्दी श्रीनगर पहुंचना था, रात को 8 बजे घर से निकल पड़ा, यशवंत से चिराग दिल्ली पर मिलना तय हुआ था। असल में यशवंत को अपने बच्चों को देहरादून में अपनी ससुराल छोड़ते हुए ट्रैक् पर निकलना था, और वापसी में साथ लेते हुए भी आना था, उसकी होम मिनिस्ट्री से इसी शर्त के साथ ट्रैक पर जाने की इज़ाज़त मिली थी। ठीक 10 बजे यशवंत चिराग दिल्ली पर कार से सपरिवार पहुँच कर मेरे को लिया और हम देहरादून के लिए निकल पड़े। 

  सुबह 6 बजे भाभी जी और बच्चों को देहरादून छोड़कर हम दोनों आगे निकल पड़े, अब देवप्रयाग से लम्बू और धनेश भाई को लेना था। यशवंत और मैं पूरी रात के जगे हुए थे तो ऋषिकेश से कुछ ऊपर यशवंत को गाडी चलाते हुए नींद आने लगी। गाडी एक छोटे से नाले के पास लगाई हाथ मुहं धुला, कुछ देर आराम करने के बाद आगे बढे और 9 बजे देवप्रयाग पहुँच गए, लम्बू और धनेश भाई ऊपर सड़क पर ही हमारा इंतज़ार कर रहे थे। मिलते ही लम्बू को बोला कि नाश्ता करवा, भूख लगी है। लम्बू के घर पर नाश्ता किया और श्रीनगर में डोभाल को फ़ोन से सूचित कर दिया कि हम देवप्रयाग से निकल रहे हैं तू भी तैयार रह। देवप्रयाग से ड्राइविंग की कमान पहाड़ी कुशल ड्राईवर लम्बू भाई ने संभाल ली । 

   श्रीनगर में एक मित्र मदन भट्ट से मिलना था, कारण भट्ट भाई पिछले सप्ताह ही रूपकुंड से होकर आये थे, उनसे मिलकर वहां रुकने खाने आदि की जानकारी ली और आगे बढ़ चले। श्रीनगर...ये शहर मेरे दिल के बहुत करीब है, स्कूल और कॉलेज की पढाई मैंने यहीं से की है, बहुत सी यादें यहाँ से जुडी हैं, जब भी यहाँ से गुजरता हूँ तो बचपन याद आ जाता है। श्रीकोट से डोभाल भी साथ हो लिया, सुमित और उसके दोस्त बाइक से आएंगे और शाम को सीधे वाण में मिलेंगे। रूपकुंण्ड जाने से पहले मैंने एक व्हाट्सअप ग्रुप बनाया था, जिसमें पिछले एक महीने से मैं सबके पीछे पड़ा था कि हर एक के पास क्या-क्या सामान होना चाहिए। ये सभी पहली बार किसी ट्रैक पर जा रहे थे, वैसे सभी पहाड़ी हैं, पैदल तो चल ही लेंगे इस बात से तो मैं निश्चिन्त था। सामान में मुख्य था अच्छा वाला रेन कोट, अच्छी ग्रिप वाले स्पोर्ट्स जूते और धूप के चश्मे। 

  सबने ले रखे थे सिवाय यशवंत और डोभाल के, श्रीकोट से आगे बढे तो डोभाल जी ने अपने किसी जानकार फौजी भाई को फ़ोन किया जो कि I.T.B.P गौचर में कार्यरत हैं, सोच रहे थे फौजी केन्टीन से सस्ते में जूते ले लेंगे, रुद्रप्रयाग में बिना रुके आगे बढ़ चले और सीधा गौचर I.T.B.P. पहुँच गये, लेकिन जब तक हम गौचर पहुँचते, लंच टाइम हो चूका था। फिर इन दोनों महानुभावों ने गौचर मार्किट से 1000 रु वाले जूते ले लिए। I.T.B.P. में जाने का एक बड़ा फायदा हो गया, वहां पर डोभाल के जो जानकार थे उन्होंने वाण गाँव में फ़ोन करके हमारे लिए फारेस्ट गेस्ट हाउस में रुकने की व्यवस्था करवा दी।

   जूते लेकर गौचर से आगे बढे, कर्णप्रयाग पहुँचने तक भूख लग गयी थी, कर्णप्रयाग में जबरदस्त लंच किया, हम पांच में दो राजपूत और तीन पंडित थे। पंडित लोगों ने डट कर मटन-मछली खाया और राजपूत ठहरे शुद्ध शाकाहारी। कर्णप्रयाग में अलकनंदा और पिंडर नदियों का संगम है, पिंडारी ग्लेशियर से पिंडर नदी का उदगम होता है। अलकनंदा नदी अपने उदगम से गंगा में परिवर्तित होने तक पांच प्रयागों से गुजरती है, विष्णुप्रयाग, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग,रुद्रप्रयाग और देवप्रयाग। देवप्रयाग में जब अलकनंदा और भागीरथी का संगम होता है उसके बाद गंगा बनती है। अभी तक हम तीन प्रयाग पार कर चुके थे।

   कर्णप्रयाग से ट्रैक के लिए जरुरी खाने की खरेदादारी करके आगे निकल पड़े। कर्णप्रयाग से पिंडर नदी के साथ साथ आगे बढ़ना था, पिंडर घाटी में भी आपदा के निशान दिखायी पड़ रहे थे, सड़क की हालत भी ख़राब ही हो रखी थी, थराली, ग्वालदम बिना रुके आगे बढ़ते गये और करीब 7.30 बजे वाण गाँव पहुँच गये। अँधेरा हमको लोहाजंग से काफी पहले ही हो चुका था, वाण में हमारा गाइड गजेन्द्र और फारेस्ट गेस्ट हाउस के ब्यवस्थापक हमारा ही इंतज़ार कर रहे थे। यशवंत और मैं पिछले 36 घंटे से लगातार जगे हुए थे, नींद के मारे हालत ख़राब हो रही थी, ठण्ड भी काफी लग रही थी, अब मन कर रहा था कब बिस्तर मिले और सो जाऊँ, लेकिन वाण फॉरेस्ट गेस्ट हाउस गांव से ठीक आधा की.मी. ऊपर, और खाने का एकमात्र होटल नीचे गांव में ही है। 

  लम्बू एक बार वाण आ चूका था, उसको पता था गेस्ट हाउस की स्तिथि के बारे में, बोलने लगा मैं कल सुबह नीचे नहीं आऊंगा वहीँ से ट्रैक् शुरू करूँगा जबकि हमको नाश्ता नीचे एकलौते होटल में ही मिलना था, वो सिर्फ बिस्कुट खा के ट्रैक् करने की सोच रहा था, जबकि बिना कुछ खाये ट्रैक् शुरू करने के मैं सख्त खिलाफ था। थोड़ी बहुत बहसबाजी हुयी, डोभाल अलग से परेशान हो रहा था तीन बाइक वाले बन्दे अभी तक नहीं पहुंचे थे, रास्ता इतना अच्छा भी नहीं था, ऐसे रास्तों पर धुप्प अँधेरे में बाइक चलाने से डर तो बना ही रहता है। 

  खैर... होटल में खाना खाया और गेस्ट हाउस में आराम करने चल पड़े। तुरंत इस आधे की.मी. की चढाई ने ट्रैक् का ट्रेलर बता दिया था कि आगे क्या होने वाला है। कुछ हद तक लम्बू सही ही कह रहा था। बहसबाजी से मेरा मूड थोडा ख़राब हुआ और गेस्ट हाउस पहुँचते ही सो गया, बाकी सब बातों में लग गए तीन तिगाडे अभी तक नहीं पहुंचे थे, अपने गाइड को नीचे गाँव में ही रुकने को और ढाबे में बोल के आ गए थे कि उनको भोजन करवाकर हमारे गाइड के साथ गेस्ट हाउस भेज देना।

क्रमशः.....

इस यात्रा के अगले भाग को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.

इस पूरे ट्रेक के मुख्य-मुख्य जगहों की फोटो :-  
बेदिनी बुग्याल

घोरा लौटांनी 

पातर नाचणी

बेदिनी से घोरा लौटानी जाता रास्ता
कालू विनायक

ब्रह्मकमल 

ब्रह्मकमल के प्राकृतिक खेत

रूपकुंड
रूपकुंड में मंदिर

रूपकुंड में नर कंकाल

जुनार गली


इस यात्रा के सभी वृतान्तो के लिंक निम्न हैं:- 



27 comments:

  1. बहुत हृदय स्पर्शी यात्रा वृत्तांत ।

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  2. बीनू भाई रूपकुंड का ट्रैलर अच्छा था, पूरी फिल्म तो जबरदस्त हिट होनी है ही।
    बेहतरीन लेख व चित्र।

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  3. बढ़िया लिखा है पर एक दो फ़ोटो श्रीनगर और रास्ते के भी डाल देते तो बढ़िया रहता। पिंडर के उफान को देख कर तो ऐसा लगता है जैसे करोड़ों विचार एक ही समय में किसी के मन मस्तिष्क में हिलोरें मार रहे हों।

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    1. श्रीनगर की इक पोस्ट अलग से लिखूंगा बचपन की यादों के साथ जल्दी ही।

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  4. सुन्दर यात्रा वर्णन अति सुन्दर चित्रों के साथ।

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  5. धन्यवाद ओम भाई।

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  6. बीनू जी अति सुन्दर चित्रों के साथ सुंदर वर्णन ।लगे रहो और लिखते रहो।

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  7. बीनू जी मेरा भी बहुत मंन है।रूपकुंड ट्रैक करना का शायद आप से पहले बातचीत होती तो मे भी चलता ।परन्तु अब आप की ये पोस्ट बहुत काम आने वाली है।

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    1. धन्यवाद भाई, कोई और भी जानकारी चाहिए हो तो स्वागत है।

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  8. अभी तो रूपकुंड पहुँचे ही नहीं और फोटू पहले से क्यों ?

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    1. ये इस ट्रैक की मुख्य मुख्य जगह की फ़ोटो हैं बुआ, रूपकुण्ड बहुत दूर है अभी।

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  9. शुरुवात बहुत अच्छी रही बीनू भाई जी ,आगे की यात्रा और भी रोमांचक होगी |सारे फोटो लाजबाब |

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  10. शुरुवात बहुत अच्छी रही बीनू भाई जी ,आगे की यात्रा और भी रोमांचक होगी |सारे फोटो लाजबाब |

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  11. yatra ki shruwat tho interesting hai or agge ke bhag jese jese aayenge vese vese or interesting ho jayegi

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    1. जी सेमवाल जी। धन्यवाद।

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  12. मेरे लिए तो ये बड़ा भयंकर होगा ! रूपकुंड को जैसा टेलीविजन पर दिखाया या आपको पढ़ा , आसान नही होता ऐसी जगह पर जाना ! हिम्मत और जज्बे को सलाम !!

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    1. टेलीविजन पर खासकर न्यूज़ चैनल वाले जिस तरह दिखाते हैं, वो सुन्दर कम और हॉरर शो ज्यादा लगता है। जबकि स्तिथि उसके एकदम विपरीत है। धन्यवाद योगी भाई।

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  13. बहुत अच्छी शुरुआत बीनू भाई.....

    रूपकुंड मेरे लिए हमेशा से कोतुहल का विषय रहा है

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  14. सुन्दर विवरण ... मनमोहक चित्र...
    आगाज़ बढ़िया है यात्रा का तो अंजाम तो शानदार होगा ही ।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद डॉ साहब।

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  15. रूप कुंड की इस रोमांचक गाथा का मैं भी एक पात्र बन गया हूँ ! पूरा पढ़ा और खुद को पहाड़ों की गोद में पानी रहा हूँ ! बहुत खूब बीनू भाई !

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  16. रूप कुंड की इस रोमांचक यात्रा गाथा में मैं भी एक पात्र सा महसूस कर रहा हूँ ! पूरी गाथा पढ़ने के बाद लग रहा है कि मैं भी आपके साथ था । बहुत खूब बीनू भाई !

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